झूठ माहात्म्य
झूठ बराबर तप नहीं, साँच बराबर पाप
जाके हिरदे साँच है, बैठा-बैठा टाप
बैठा-बैठा टाप, देख लो लाला झूठा
'सत्यमेव जयते' को दिखला रहा अँगूठा
कहँ ‘काका ' कवि, इसके सिवा उपाय न दूजा
जैसा पाओ पात्र, करो वैसी ही पूजा
रचना : काका हाथरसी
‘ काका की फुलझड़ियाँ ’ पुस्तक ( डायमण्ड पॉकेट बुक्स , नई दिल्ली , संस्करण २००२ ) से साभार उद्धृत
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